• कलश ट्रस्ट द्वारा गढ़वाली भाषा के मानकीकरण पर दो दिनी कार्यशाला शुरू
खबर काम की
देहरादून (सीनियर रिपोर्टर)। कलश ट्रस्ट की ओर से गढ़वाली भाषा के मानकीकरण को लेकर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने शुभारंभ किया। कहा कि नई पीढ़ी अपनी भाषा से जुड़ सके, इसके लिए ऐसे आयोजन जरूरी हैं। कहा कि पहले हमें अपने समाज में मातृभाषा को बचाना होगा, इसके बाद ही हम वैश्विक स्तर पर भाषा के विमर्श को ले जा सकते हैं।
गुरुवार को रिस्पना पुल के समीप एक होटल में गढ़वाली भाषा में वर्णमाला, लिंग, बचन और कविता व कहानी लेखन पर कार्यशाला शुरू हुई। पहले दिन के प्रारंभिक सत्र में कलश के संयोजक ओमप्रकाश सेमवाल ने स्वागत संबोधन में कहा कि मातृभाषा के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयासों की जरूरत है। गढ़वाली भाषा के जानकार रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि भाषा का मानकीकरण निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। हमें कार्यशालाओं का दस्तावेजीकरण भी करना होगां
डॉ. नंदकिशोर हटवाल ने “गढ़वाली भाषा में ध्वनि और वर्णमाला“ विषय पर कहा कि मौखिक परम्परा से भाषा को लिखित रूप में स्थापित करने के लिए लिपि की आवश्यकता है। उन्होंने गढ़वाली में प्रयुक्त ’ळ’ वर्ण का प्रयोग वैश्विक फलक को देखते हुए करने पर बल दिया। वरिष्ठ कवि देवेंद्र प्रसाद जोशी ने ’गढ़वाली कविता में कथ्य’ विषय पर कहा कि समय के साथ कविता के कथ्य में भी परिवर्तन करने की जरूरत है।
गढ़वाली भाषा पर शोध कर रहे युवा रोहित गुसाईं ने गढ़वाली शब्दों की व्युत्पत्ति पर जानकारी साझा की। पहले चरण के अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. प्रेम मोहन डोभाल ने गढ़वाली में गहन अध्ययन करने की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में ’गढ़वाली कविता का इतिहास’ पर गिरीश सुंदरियाल ने प्रकाश डाला। कहा कि लगभग सन् 1750 से गढ़वाली कविता के लेखन की शुरुआत मानी जाती है। ’गढ़वाली कविता में शिल्प’ पर बीना बेंजवाल ने विस्तृत व्याखान रखा। द्वितीय सत्र की अध्यक्षता जीवंती खौयाल ने की।
पहले दिन के अंतिम सत्र में कवि सम्मेलन आयेजित किया गया। नई, पुरानी पीढ़ी के कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। कार्यशाला का संचालन गणेश खुगशाल गणी, प्रेमलता सजवाण, शांति प्रकाश जिज्ञासु ने किया। मौके पर मदन मोहन डुकलान, नीता कुकरेती, बीना कंडारी, दिनेश ध्यानी, देवेंद्र उनियाल, आशीष सुंदरियाल, राजीव खत्री, शिवदयाल शैलेज, धनेश कोठारी, प्रीतम अपच्छ्याण, अरविंद प्रकृति प्रेमी, अरविंद दरमोड़ा आदि मौजूद रहे।