खबर काम की
ऋषिकेश (रिपोर्टर)। श्री भरत मंदिर के महंत वत्सल पर प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने अक्षय तृतीया के महत्व को बताते हुए कहा कि उत्तराखंड में तीर्थनगरी ऋषिकेश को योग और ध्यान की नगरी कही जाती है। इस नगरी को भगवान विष्णु की भी नगरी कही जाती है। इतना ही नहीं ऋषिकेश का नाम भगवान विष्णु के नाम हृषिकेश से लिया गया है। इस पतित पावनी भूमि पर भगवान विष्णु स्वयं विराजमान है।
जहां भगवान विष्णु 12वीं शताब्दी से स्थापित है। जी हां, हम बात कर रहे हैं, ऋषिकेश के मुख्य बाजार झंडा चौक पर स्थित भरत मंदिर की। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। इस प्राचीन मन्दिर की कथा स्कंद पुराण के केदारखंड में भी वर्णित है।
भगवान विष्णु ने ऋषियों को दिया था दर्शन
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में रैभ्य ऋषि एवं सोम ऋषि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनको दर्शन दिए और उनके आग्रह पर अपनी माया के दर्शन कराए। ऋषि ने माया के दर्शन कर भगवान से प्रार्थना करते हुए कहा कि प्रभु आप अपनी माया से मुक्ति प्रदान करें। भगवान विष्णु ने तब ऋषि को वरदान दिया कि आपने इन्द्रियों (हृषीक) को वश में करके मेरी आराधना की है, इसलिए यह स्थान हृषीकेश कहलाएगा और मैं कलियुग में भरत नाम से यहां विराजमान रहूंगा। हृषीकेश के त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान के बाद जो भी प्राणी मेरा दर्शन करेगा, उसे माया से मुक्ति मिल जाएगी।
बद्रीनारायण के दर्शन के बराबर मिलता है पुण्य लाभ
बता दें, भरत मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति उसी शालिग्राम शिला से निर्मित है, जिस शिला से बद्रीनारायण की मूर्ति निर्मित की गई है। हर वर्ष बसन्त पंचमी के दिन हृषीकेश नारायण भगवान श्री भरत को हर्षोल्लास के साथ त्रिवेणी संगम पर स्नान के लिए ले जाया जाता है एवं धूमधाम से नगर भ्रमण के बाद पुनः मन्दिर में प्रतीकात्मक प्रतिष्ठत किए जाते हैं। उस भक्त को भगवान श्री बद्रीनारायण के दर्शन के पुण्य-लाभ की प्राप्ति भी होती है। इसके अलावा भरत भगवान के मंदिर में आज भी पुरातन कलाकृतियों के अवशिष्ट मौजूद है।
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से 1.5 किमी और त्रिवेणी घाट से 500 मीटर की दूरी पर, भरत मंदिर ऋषिकेश के मध्य में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को हृषिकेश नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
आपको बता दें कि भरत मंदिर ऋषिकेश के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। केदारखंड के प्राचीन अभिलेखों के अनुसार, मंदिर की मुख्य संरचना आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में बनवाई थी। कहा जाता है कि यह मंदिर 1398 ई. में तैमूर के हमले में तबाह हो गया था। मंदिर के मुख्य देवता भगवान विष्णु हैं, जिन्हें हृषिकेश नारायण कहा जाता है। भगवान विष्णु की मूर्ति सालिग्राम, एक काले पत्थर से तराशी गई थी और इसमें हिमालय की आकृतियाँ हैं।
भरत मंदिर का नाम महाभारत, विष्णु पुराण, श्रीमद्भागवत, वामन पुराण और नरसिंह पुराण जैसी कई हिंदू लिपियों और महाकाव्यों में मिलता है। कई लोगों का मानना है कि अशोक के शासनकाल के दौरान श्री भरत मंदिर और क्षेत्र के अन्य मंदिरों को बौद्ध मठों में परिवर्तित कर दिया गया था। खुदाई करने पर, यहाँ बुद्ध की मूर्ति और कुछ अवशेष मिले थे। पुराने बरगद के पेड़ के नीचे आज भी यह टुकड़ा मिल सकता है।
वसंत पंचमी के रूप में प्रसिद्ध वसंत त्योहार के समय कई पर्यटक इस मंदिर में आते हैं। इस अवसर पर, भगवान विष्णु की मूर्ति को पवित्र स्नान के लिए पास के मायाकुंड में ले जाया जाता है और फिर मूर्ति को वापस मंदिर में ले जाने के लिए एक भव्य जुलूस निकाला जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अक्षय तृतीया के दिन मंदिर की 108 परिक्रमा करता है, तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसे बद्रीनाथ धाम के पवित्र तीर्थ के बराबर कहा जाता है।
मंदिर परिसर में एक संग्रहालय है जो कई इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को आकर्षित करता है। इस संग्रहालय में खुदाई के दौरान मिली मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन और सजी हुई ईंटें प्रदर्शित हैं। मंदिर में यक्षिणी, यक्ष और चतुर्भुज विष्णु की मूर्तियाँ भी देखने लायक हैं।